Become the master of your mind : अपने मन के मालिक बनें। सुख-दुख आपके हाथ में होगा। साबित हो चुका है कि सुख-दुख हमारे मन की भावना है। हम वही महसूस करते हैं जो सोचते हैं। अधिकतर मामलों में यह हमारी मानसिक स्थिति को दर्शाता है। एक के लिए किसी तरह पेट भर लेना ही बड़ा सुख है। दूसरा भोजन के भंडार में भी खड़ा रह कर तय नहीं कर पाता कि उसे क्या खाना चाहिए। खाता भी है को संतुष्ट नहीं रहता। इसी तरह सुख-दुख का भाव कितनी देर तक हमें महसूस होगा, यह भी मानसिक स्थिति पर निर्भर होता है। किसी भाव को कितनी देर तक खुद पर लादे रखते हैं, वही हमारे मूड को तय करता है। समझदार लोग हैं, मूड को नियंत्रित रखते हैं। वे इच्छानुसार जीवन व्यतीत करते हैं। अधिकतर लोग ऐसा नहीं कर पाते। उनका चंचल मन उन्हें भटकाता रहता है।
विशेष अभ्यास से होता है मन नियंत्रित
जो अपने मन के मालिक नहीं बन पाते वे जीवन भर दुखी और परेशान रहते हैं। योग, ध्यान, तंत्र-मंत्र, पूजा आदि का मकसद मन के भटकाव पर नियंत्रण है। इससे लोग मन की कमान अपने हाथ में लेते हैं। जब मन पर नियंत्रण हो जाता है तो आत्मा का परमात्मा से मिलने की राह खुल जाती है। तब परमानंद की अनुभूति होने लगती है। समझदारी से काम लें तो कुछ समय में ही ऐसा किया जा सकता है। जरूरत है विशेष व नियिमत अभ्यास की। इस बारे में एक बोध कथा काफी प्रचलित है। उसे पढ़ें और मनन करें। आपको मन पर नियंत्रण की राह मिल जाएगी।
बेचैन युवक और महात्मा की बोध कथा
एक युवक जंगल में भागा जा रहा था। चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। परेशान नजर आ रहा था। भागते-भागते थक गया। तब एक घने पेड़ की छाया में सुस्ताने के लिए बैठा। संयोग से वहां एक महात्मा बैठे थे। उन्होंने युवक का हाल देखा तो कारण पूछा। युवक ने बताया कि उसका मन बेचैन है। मन कहीं नहीं लग रहा है। वह शांति की तलाश में भाग रहा है। महात्मा ने पूछा कि वह बेचैन क्यों है? क्या परेशानी है? युवक ने कहा कि मन स्थिर नहीं हो पा रहा। हमेशा उद्विग्न और अशांत रहता है। साधु-महात्माओं से भी मिला लेकिन फायदा नहीं हुआ। तब सोचा जंगल में जाकर देखूं। इसीलिए भागा जा रहा हूं। अब तक जंगल में भी कहीं चित्त शांत नहीं हो सका है। यह कहकर अगले सफर के लिए उठ खड़ा हुआ। अपने मन के मालिक न होने से उसका यह हाल हुआ।
दिखाई जीवन की राह
महात्मा ने कहा- तनिक रुको। शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं। उसने पूछा- कैसे? महात्मा ने कहा कि पहले तुम मेरे कुछ सवालों का जवाब दो। उन्होंने पूछा कि तुम्हारी बेचैनी का कारण क्या तुम्हारा घर, परिवार, जगह या रोजगार है? उसने कहा कि इनमें से कोई भी नहीं। मैं तो इन सबसे प्रेम करता हूं। ये सभी मेरे जीवन में महत्वपूर्ण हैं। महात्मा ने कहा- लेकिन तुम उन्हीं सबसे दूर भाग रहे हो। यह कैसा भटकाव और कैसा निर्णय है? युवक उलझन में पड़ गया। उन्होंने उसे समझाया कि वास्तव में तुम्हारी समस्या का असली कारण तुम ही हो। तुम्हारा मन तुम्हें भगा रहा है। तुम उसके गुलाम बनकर भागे जा रहे हो। बेचैन मन है। समस्या और परेशानी भी उसे ही है। और तुम शरीर को तथा अपने प्रिय पात्रों को सजा दे रहे हो। अपने मन के मालिक बनने का यत्न करो।
समझाया-अपने मन के मालिक बनो
उन्होंने कहा कि समस्या भी तुम हो और समाधान भी। ऐसे तो तुम कितना भी और कहीं भी भाग लो, मन को शांति नहीं मिलेगी। मन की तो प्रकृति ही चंचलता है। वह इधर-उधर भटकता रहता है। उसके पीछे भागोगे तो भटकते ही रह जाओगे। जरूरत मन को पकड़ने और नियंत्रित करने की है। यह तुम्हारे ही हाथ में है। मन के पीछे मत भागो। उसे अपने हिसाब से भगाओ। तभी वह तुम्हारी बात मानेगा। और तुम अपने मन के मालिक बन सकोगे। यह सुनकर युवक की आंखें खुल गईं। उसने महात्मा के चरण पकड़ लिये। कहा कि आपने सच्चा ज्ञान दे दिया। अब मैं घर जाकर अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से पालन करूंगा। वहीं रहकर मन को वश में करने का प्रयत्न करूंगा। मैं अपने मन के मालिक बनूंगा। यह कह कर युवक घर लौट गया।
इस तरह करें मन को नियंत्रित
1-रोज कम से कम बीस मिनट एकांत में अपने साथ बिताएं। किसी साफ जगह पर सहज आसान में बैठें। शरीर को शांत छोड़ दें। इस दौरान आपको खुजली, छींक जैसी समस्या से सख्ती से पार पाना होगा। शरीर में कोई गतिविधि नहीं हो।
2–पहले पांच बार गहरी सांस लें और छोड़ें। फिर सांसों के आवागमन पर ध्यान एकाग्र करें।
3–अब आप मन को खुला छोड़ दें। खुद को द्रष्टा के रूप में रखें। उसे जितना भागता है, भागने दें। चिंता न करें और न उसके पीछे भागें। बस शांत चित्त होकर देखते रहें।
4–भागते-भागते जब मन थोड़ा शिथिल हो तो उसे अपनी इच्छानुसार खास विचार या दिशा में मोड़ने का प्रयास करें। जैसे ही आप ऐसा करेंगे, वह फिर भागने लगेगा। परेशान न हों। अपना प्रयास जारी रखें। कुछ ही दिन में आपका शरीर और मन दोनों नियंत्रित होने लगा है। इस तरह आप अपने मन के मालिक बनें।
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