किसी का अंधानुकरण नहीं करें, सहज और सरल है धर्म

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अक्षय तृतीया तीन मई को
अक्षय तृतीया तीन मई को।

don’t be a blind follower : किसी का अंधानुकरण नहीं करें। धर्म सरल, सहज और सुबोध है। इसमें कोई पेंच नहीं है। पोंगापंथी और अयोग्य लोगों ने इसे रहस्यमय बना दिया है। इसकी आड़ में वे अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं। इससे भक्त भ्रमित होते रहते हैं। नीचे की बोधकथा इसका ज्वलंत उदाहरण है। इसमें अंधानुकरण करने वाले की दुर्गति को स्पष्ट किया गया है। इससे सीख मिलती है कि आंख मूंदकर किसी भी बात को स्वीकार नहीं करें।

बोध कथा

कथा बहुत पुरानी है। उस समय एक आश्रम में गुरूजी रहते थे। उनसे बहुत सारे शिष्य शिक्षा लेते थे। एक दिन उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया। उन्होंने शिष्यों को बताया कि सभी जीवों में ईश्वर का वास होता है। अतः हमें सबका सम्मान करना चाहिए। उन्हें नमस्कार करना चाहिए। इसके कुछ दिनों बाद गुरूजी ने शिष्यों को लकड़ी लेने के लिए जंगल भेजा। शिष्य वहां जाकर लकड़ियां चुनने लगे। तभी एक पागल हाथी आ धमका। शिष्य शोर मचाने लगे। भागो-भागो पागल हाथी आया। फिर वे भागने लगे। लेकिन एक शिष्य उस खतरनाक स्थिति में भी शांत खड़ा था। उसे ऐसे देख साथियों को आश्चर्य हुआ। उनमे से एक बोला, “ये तुम क्या कर रहे हो? देखते नहीं पागल हाथी इधर ही आ रहा है। हम सबकी जान खतरे में है। अतः भागो और अपनी जान बचाओ।

पागल हाथी को देखकर भागा नहीं भ्रमित शिष्य

शिष्य बोला-तुम लोग डरो और भागो। मुझे किसी जीव से भय नहीं है। इस पागल हाथी से भी नहीं। गुरूजी ने कहा था कि हर जीव में ईश्वर का वास है। इसलिए डरने और भागने की जरूरत नहीं है। ऐसा कह कर वह वहीं खड़ा रहा। जैसे ही हाथी पास आया वह आदर सहित उसे नमस्कार करने लगा। पागल हाथी को इसकी समझ कहां। वह तो सामने आने वाली हर एक व्यक्ति व वस्तु पर प्रहार कर रहा था। जैसे ही शिष्य सामने आया उसे भी सूंढ़ में कर फेंक दिया। फिर वह आगे बढ़ गया। शिष्य को बहुत चोट आई। वह गंभीर रूप से घायल होकर बेहोश हो गया।

गुरु ने समझाया-किसी का अंधानुकरण नहीं करें

हाथी के जाने के बाद बाकी शिष्यों ने उसे उठाकर आश्रम पहुंचाया। उसे होश आया तो सामने गुरु खड़े थे। उन्होंने उससे पागल हाथी के सामने खड़े रहने का कारण पूछा। उसने जवाब दिया कि आपने ही तो कहा था कि सभी जीवों में ईश्वर होता है। इसी कारण मैं डरा नहीं और सामने खड़ा रहा। तब गुरुजी ने कहा- कि मेरी आज्ञा मानना अच्छी बात है। मगर मैंने पहले तुम्हें यह भी तो कहा था कि अपने विवेक का भी प्रयोग करना। तुमने पागल हाथी में तो ईश्वर को देखा। जब बाकी कई सहपाठी तुम्हें हाथी के खतरे से चेता रहे थे तो उन्हें नहीं देखा। उन सबमें भी तो ईश्वर हैं। ईश्वर के उतने अंश तुम्हें नहीं दिखे। सहपाठियों की बात मान लेते तो यह हालत नहीं होती।

अपने विवेक का प्रयोग अवश्य करें

अंधानुकरण करने वालों के लिए यह सीख है। वे किसी से मिले ज्ञान को लागू करते समय अपने विवेक का प्रयोग अवश्य करें। जैसे- जल में ईश्वर हैं। लेकिन किसी जल को लोग देवता पर चढ़ाते हैं। किसी जल से लोग सफाई करते हैं। इसी तरह कोई भी निर्णय देश, काल और परिस्थिति को ध्यान में रखकर लें। किसी भी बात का असल भाव समझें। उसकी विवेचना करें। सिर्फ शब्दों को पकड़ कर न बैठें। जैसे- गुरूजी ने शिष्यों को प्रत्येक जीव में ईश्वर देखने को कहा था। इसका अर्थ था कि सभी का आदर करें। किसी को क्षति नहीं पहुंचाएं। लेकिन वह शिष्य उनके शब्दों को पकड़ कर बैठ गया। इससे उसकी जान पर बन आई।

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