जानें धनतेरस का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन-कथा

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जानें धनतेरस का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन-कथा
जानें धनतेरस का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन-कथा

importance of dhanteras festival : जानें धनतेरस का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन-कथा। पांच दिनों की दीपावली महोत्सव का पहला दिन धनतेरस है। इसे मनाने को लेकर विवाद है। कुछ लोग 12 तो कुछ 13 को मना रहे है। इसका कारण है कि त्रयोदशी 12 नवंबर 2020 को लग जाएगी। लेकिन 13 की त्रयोदशी का सूर्योदय 13 नवंबर को है। मेरे विचार से 13 को ही धनतेरस मनाना चाहिए। अधिकतर लोग इसे किसी वस्तु, आभूषण की खरीददारी का दिन मानते हैं। जबकि सबसे महत्वपूर्ण है-शुभ मुहुर्त में पूजा। इस दिन लक्ष्मी पूजा से समृद्धि, खुशियां और सफलता मिलती है। भगवान धन्वंतरि की पूजा आवश्यक है। कुबेर की पूजा की भी मान्यता है। इसी दिन धनवन्‍तरी का जन्‍म हुआ था। वे समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश और आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे। इसी कारण धन्वंतरि को औषधि का जनक कहा जाता है।

खरीददारी का शुभ मुहूर्त

यदि 12 नवंबर को धनतेरस मना रहे हैं तो

रात 11.30 से 01.07 बजे तक खरीददारी करें।

13 नवंबर का शुभ मुहूर्त

खरीदारी के लिए : सुबह 05.59 बजे से 10.06 बजे तक।
और दोपहर में 03.38 बजे से शाम 05.00 बजे तक

राशि के हिसाब से करें खरीददारी। नहीं रहेगी आर्थिक समस्या

मेष- सोना, चांदी और भूमि।
वृष- चांदी, हीरा, भूमि और वाहन।
मिथुन- सोना, चांदी, भूमि, मकान और इलेक्ट्रानिक वस्तु।
कर्क- सोना, चांदी और भूमि।
सिंह- सोना और तांबा।  
कन्या- स्थाई संपत्ति और सोना।
तुला- चांदी।  
वृश्चिक- भूमि, मकान और सोना।
धनु- सोना और स्थाई संपत्ति।
मकर- स्थाई संपत्ति और चांदी।
कुंभ- सोना और चांदी। 
मीन- किसी भी वस्तु की खरीददारी कर सकते हैं।
नोट-कई जगहों पर इस दिन सभी लोग झाड़ू अवश्य खरीदते हैं। इसे अत्यंत शुभ माना जाता है।

पूजन का शुभ समय

पूजा का दिन निर्विवाद रूप से 13 नवंबर को है। शाम 05.28 बजे से शाम 05.59 बजे के बीच पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि स्थिर लग्न में पूजा से लक्ष्मी जी घर में ठहर जाती है। इसीलिए धनतेरस पूजन के लिए यह समय सबसे उपयुक्त है। इसमें सबसे पहले मिट्टी का हाथी और भगवान धन्वंतरि की मूर्ति को स्‍थापित करें। इसके बाद चांदी या तांबे की आचमनी में जल का आचमन करें। फिर भगवान गणेश का पूजन करें। हाथ में अक्षत और पुष्‍प लेकर धन्वंतरि का ध्यान करें। अकाल मृत्यु से बचने के लिए घर के बाहर दीपक जलाएं। यह दीपक मृत्यु के देवता यमराज के लिए होता है। मान्यता है कि पूजा के दौरान कथा सुननी चाहिए। इसकी कथा से जानें धनतेरस का महत्व।

धनतेरस की कथा

एक समय विष्णु मृत्युलोक में विचरण के लिए आ रहे थे। लक्ष्मी जी ने भी साथ चलने का आग्रह किया। विष्णु जी बोले- ‘मैं जो कहूं, वैसे ही मानो, तो चलो’। लक्ष्मी जी ने स्वीकार किया। वे भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। एक स्थान पर विष्णु ने लक्ष्मी से कहा। ‘जब तक मैं न आऊं, तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, उधर मत देखना’। लक्ष्मी जी को कौतुक उत्पन्न हुआ।  आख‍िर दक्षिण दिशा में क्या है? जो मुझे मना कर भगवान स्वयं गए। कोई रहस्य जरूर है। उत्सुकता बढ़ती गई। आखिरकार लक्ष्मी जी से रहा न गया। मां लक्ष्मी भी उधर चल पड़ीं। कुछ दूर पर सरसों का खेत दिखाई दिया। वह खूब खि‍ला हुआ और लहलहा रहा था। वे उधर ही चलीं। सरसों की शोभा से वे मुग्ध हो गईं। उसके फूल तोड़कर अपना शृंगार किया।  

भगवान विष्णु संग हुई शर्त तोड़ी माता लक्ष्मी ने

माता लक्ष्मी आगे बढ़ीं। आगे गन्ने का खेत था। लक्ष्मी जी ने चार गन्ने लिए और रस चूसने लगीं। तभी विष्णु जी आए और लक्ष्मी जी पर नाराज हो गए। उन्होंने कहा- ‘मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था। तुम नहीं मानीं और चोरी कर बैठीं। अब तुम सजा के रूप में किसान की 12 वर्ष तक वा करो’। ऐसा कहकर भगवान क्षीरसागर चले गए। लक्ष्मी किसान के घर रहने लगीं। वह किसान अति दरिद्र था। लक्ष्मीजी ने किसान की पत्नी से कहा। तुम स्नान करो। फिर मेरी बनाई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो। उसके बाद रसोई बनाना। तुम्हें मुंहमांगा वरदान मिलेगा। किसान की पत्नी ने लक्ष्मी के कहे अनुसार ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर अन्न, धन आदि से भर गया। लक्ष्मी जी ने किसान को धन-धान्य से भर दिया।

भगवान ने माता लक्ष्मी को शाप दिया

किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं। विष्णुजी उन्हें लेने आए। अब किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। लक्ष्मी भी बिना किसान की मर्जी जाने को तैयार न थीं। तब विष्णुजी ने एक चतुराई की। विष्णुजी जिस दिन लक्ष्मी को लेने आए थे, उस दिन वारुणी पर्व था। उन्होंने किसान को वारुणी पर्व का महत्व समझाया। फिर कहा कि तुम परिवार सहित गंगा में जाकर स्नान करो। कौड़ियों को भी जल में छोड़ देना। जब तक तुम नहीं लौटोगे, मैं लक्ष्मी को नहीं ले जाऊंगा। लक्ष्मीजी ने किसान को चार कौड़ियां गंगा में देने को दीं। किसान ने वैसा ही किया। वह सपरिवार गंगा स्नान करने के लिए चला। उसने गंगा में कौड़ियां डालीं। तभी देखा कि चार हाथ गंगा में से निकले।

गंगा ने बताया माता लक्ष्मी का रहस्य

उन्होंने वे कौड़ियां ले लीं। किसान को आश्चर्य हुआ। उसे लगा कि ये हाथ किसी देवी के हैं। तब किसान ने गंगाजी से पूछा ‘हे माता! ये चार भुजाएं किसकी हैं?’ गंगाजी बोलीं ‘हे किसान! वे चारों हाथ मेरे ही थे। तूने जो कौड़ियां भेंट दी हैं, वे किसकी दी हुई हैं?’ किसान ने कहा- ‘मेरे घर जो स्त्री आई है, उन्होंने ही दी हैं। ‘ इस पर गंगाजी बोलीं कि तुम्हारे घर जो स्त्री आई है वह साक्षात लक्ष्मी हैं और पुरुष विष्णु भगवान हैं। तुम लक्ष्मी को जाने मत देना। अन्यथा पुन: निर्धन हो जाआगे। यह सुन किसान घर लौट आया। वहां लक्ष्मी और विष्णु भगवान जाने को तैयार बैठे थे। किसान ने लक्ष्मी जी का आंचल पकड़ लिया। वह बोला कि मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा। 

जानें धनतेरस का महत्व

भगवान ने कहा कि इन्हें कौन जाने देता है? पर ये तो चंचला हैं। कहीं ठहरती ही नहीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था। इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। 12 वर्ष का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं। अब मैं लक्ष्मी जी को नहीं जाने दूंगा। तुम कोई दूसरी स्त्री यहां से ले जाओ। तब लक्ष्मीजी ने कहा। हे किसान! तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं जैसा करो। कल तेरस है। मैं तुम्हारे लिए धनतेरस मनाऊंगी। तुम कल घर को लीप-पोतकर, स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना। सांयकाल मेरा पूजन करना। फिर तांबे के कलश में रुपये भरकर मेरे निमित्त रखना। मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। मैं इस दिन की पूजा से वर्ष भर तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। मुझे रखना है तो इसी तरह प्रतिवर्ष मेरी पूजा करना। जानें धनतेरस का महत्व ने आपको संतुष्ट कर दिया होगा।

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