शिव के त्रिशूल पर काशी, शक्ति के साथ विराजमान हैं शिव

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ज्ञानवापी में शिव ने त्रिशूल से निकाला था जल
ज्ञानवापी में शिव ने त्रिशूल से निकाला था जल।

Shiva is seated with shakti in Kashi, situated on the trident of shiva :  शिव के त्रिशूल पर काशी स्थित है। यहां शक्ति के साथ विराजमान हैं शिव। कला, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म, तंत्र-मंत्र, योग-ध्यान, ज्ञान-विज्ञान आदि किसी भी क्षेत्र की चर्चा काशी के बिना पूरी नहीं होती है। यह स्थान द्वादश ज्योतिर्लिंग के साथ शक्तिपीठ के रूप में भी चर्चित है। यहां बाबा की छटा निराली है। उनके दरबार में सालों भर भीड़ रहती है। देश ही नहीं विदेश से भी बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं। शिवरात्रि में तो आस्था का जन सैलाब उमड़ पड़ता है। यहां एक ही ज्योतिर्लिंग में शिव-शक्ति हैं। वाम भाग में बाबा और दाएं में मां विराजते हैं। यह अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।

काशी-विश्वनाथ मंदिर से जुड़े जाने-अनजाने तथ्य

शिव के त्रिशूल पर काशी स्थित है। जानें इससे जुड़े जाने-अनजाने तथ्य। काशी-विश्वनाथ में ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाएं में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप में विराजमान हैं। माता के दाएं भाग में होने के कारण ही काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है। यहां मृत्यु व अंतिम संस्कार को लेकर विशेष मान्यता है। कहा जाता है कि जिस मनुष्य की यहां मृत्यु होती है या अंतिम संस्कार होता है, उसे दोबारा गर्भधारण नहीं करना पड़ता है। शिव खुद तारक मंत्र देकर ऐसे लोगों को तारते हैं। यहां अकाल मृत्यु के शिकार को भी मुक्ति मिल जाती है। मान्यता है कि ऐसे की मुक्ति बेहद कठिन होती है। इसके लिए उसे शिव की विशेष कृपा की जरूरत होती है।

भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी

वाराणसी को यूं ही मुक्ति क्षेत्र नहीं कहा जाता है। कहा जाता है कि शिव के त्रिशूल पर काशी स्थित है। चूंकि यहां शिव और शक्ति साथ विराजमान है, इसलिए भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। इसी कारण यहां सालों भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। कहा जाता है कि बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां अन्नपूर्णा रूप में काशी में रहने वालों का पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा को इसीलिए तारकेश्वर भी कहते हैं। बाबा के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं।

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बाबा-विश्वनाथ मंदिर के चार द्वार, तंत्र के लिए अहम

बाबा मंदिर के चार द्वार हैं। तंत्र साधना के लिहाज से उनका विशेष महत्व है। ये चारों द्वार से प्रवेश और बाबा के दर्शन का अलग-अलग महत्व और फल है। दुनिया का यह एकमात्र मंदिर है जहां शिव-शक्ति साथ विराजमान हैं और तंत्र द्वार भी हैं। ये द्वार है क्रमशः- शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार और निवृत्ति द्वार।

तंत्र साधना का बड़ा केंद्र 

यह पूरा क्षेत्र ही तंत्र साधना का बड़ा केंद्र है। विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। तांत्रिक सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान है। इसे श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है। मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है। इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है। यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं। शिवरात्रि में बाबा विश्वनाथ औघड़ रूप में विचरण करते हैं। उनके बारात में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी सभी शामिल होते हैं।

जन्म-मरण के पार बसी है काशी

काशी के बारे में प्रचलित है कि यह नगरी जन्म-मरण के पार बसी है। शिव के त्रिशूल पर काशी को  विराजमान माना जाता है। भौगोलिक दृष्टि से देखें तो मैदागिन क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों के बीच में ज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है। यह त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकता। बाबा काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान हैं। वह दिन भर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि नौ बजे श्रृंगार आरती के बाद राजा के वेश में होते हैं। इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं।

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