uniqueness of chhath festival : निराली है छठ महापर्व की कथा और महिमा। इन दिनों हर जगह छठ की धूम है। इसका प्रचार और प्रसार बढ़ता जा रहा है। कई लोगों को इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है। उन्हें इसके बारे में कुछ प्रमुख जानकारी दे रहा हूं। दीपावली के ठीक छह दिन बाद छठ होता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को “सूर्य षष्ठी का व्रत” करने का विधान है। छठा दिन होने के कारण इसे छठ पर्व कहा जाता है। इस दिन सूर्य व षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि दुनिया उगते सूरज को नमन करती है। लेकिन छठ मनाने वालों के लिए ऐसा नहीं हैं। “छठ” का पहला अर्घ्य डूबते हुए सूरज को दिया जाता है। इसकी खास परंपरा है। लोग डूबते हुए को पहले प्रणाम करते हैं। इसके बाद उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
भेदभाव मिटाता है सूर्य
छठ पर्व सामाजिक समरसता का संदेश देता है। यह भेदभाव मिटाता है। सभी जाति व वर्ग के लोग एक साथ जल में खड़े होते हैं। एक ही जगह व समय पर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। भगवान भास्कर की अर्चना सभी भेदभाव को मिटाती हैं। भगवान सूर्य भी हर सुबह यही संदेश लेकर आते हैं। उनका संदेश है कि किसी से भेदभाव नहीं करो। उनकी किरणें महलों पर भी उतनी ही पड़ती हैं जितनी झोपड़ी पर। उनके लिए कोई बड़ा या छोटा नहीं है। सब एक समान है। भगवान सूर्य सुख और दु:ख में एक सामान रहने का संदेश भी देते हैं। उन्हीं की प्रसन्नता के लिए हम छठ मनाते हैं।
जानें छठ मैया फिर क्यों होती है सूर्य की पूजा
व्याकरण के अनुसार छठ शब्द स्त्रीलिंग है। उन्हें छठी मैया कहा जाता है। वैसे किंवदंती अनेक हैं। कुछ लोग उन्हें सूर्य की बहन मानते हैं। कुछ लोग इन्हें भगवान सूर्य की मां कहते हैं। इन विवादों से दूर आस्था का यह पर्व श्रद्धालुओं के रोम-रोम में बसा है। छठ का नाम सुनते ही उनके रोम-रोम पुलकित हो जाते हैं। वे जन्मभूमि की याद में डूब जाते हैं। इसे करने वाली स्त्रियां धन-धान्य, पति-पुत्र तथा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहती हैं।
अत्यंत कठिन व्रत
चार दिनों का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है। यह कड़े नियम व निष्ठा से की जाती है। पवित्रता के लिए व्रती अपने हाथ से ही सारा काम करती हैं। नहाय-खाय से लेकर अर्घ्य तक व्रती पूरा निष्ठा का पालन करती हैं। भगवान भास्कर को 36 घंटे का निर्जल व्रत रहकर मनोकामना पूर्ति की मांग की जाती है। सूर्य धन, धान्य, समृद्धि आदि प्रदान करते हैं। व्रती सायंकालीन प्रथम अर्घ्य से पूर्व मिट्टी की प्रतिमा बनाकर षष्ठी देवी का आवाहन एवं पूजन करते हैं। प्रात: अर्घ्य के पूर्व षष्ठी देवी का पूजन कर विसर्जन करते हैं। मान्यता है कि पंचमी शाम से ही घर में भगवती षष्ठी का आगमन हो जाता है। पहला दिन नहाय-खाय होता है। दूसरे दिन खरना का है। तीसरे दिन साध्यकालीन अर्घ्य दिया जाता है। चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसी के साथ महापर्व का समापन होता है।
छठ पर अलग-अलग कथा और मान्यता
निराली है छठ महापर्व की कथाएं। पहली मान्यता पूजा को लेकर है। छठ देवी को सूर्य देव की बहन कहा जाता है। उन्हें प्रसन्न किया जाता है। को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर (तालाब) के किनारे यह पूजा की जाती है।
माता सीता ने की थी छठ पूजा
दूसरी मान्यता रामायण काल की कथा की है। भगवान राम के वनवास से लौटने पर राम और सीता ने यह व्रत किया था। उन्होंने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन उपवास किया। फिर भगवान सूर्य की आराधना की। उन्होंने सप्तमी के दिन व्रत पूर्ण किया। सरयू के तट पर राम-सीता ने इस अनुष्ठान को किया। इससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था।
द्रौपदी ने की थी सूर्य की उपासना
एक अन्य कथा महाभारत काल की है। पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए। फिर वे जंगल-जंगल भटक रहे थे। इस दुर्दशा से छुटकारा पाने के लिए द्रौपदी ने सूर्यदेव की आराधना की। उन्होंने छठ का व्रत किया। इस व्रत को करने के बाद पांडवों के दिन पलटे। उन्हें अपना खोया हुआ वैभव पुन: प्राप्त हो गया। निराली है छठ महापर्व की कथाएं। कथा के अनुसार इसकी शुरुआत सतयुग में ही हुई।
छठ देवी की पूजा मनु पुत्र प्रियव्रत ने भी की थी
छठ से जुड़ी एक कथा मनु पुत्र प्रियव्रत की है। काफी समय बाद भी उन्हें संतान नहीं हुई। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। फिर उनकी पत्नी को प्रसाद दिया। इससे गर्भ उन्हें ठहर गया। पुत्र हुआ लेकिन मृत। प्रियवत मृत बालक को लेकर श्मशान गए। पुत्र वियोग में प्रियवत ने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया। उसी समय षष्ठी देवी वहां आ पहुंची। शव को भूमि पर रखकर राजा ने उनको प्रणाम किया। उन्होंने पूछा- हे सुव्रते! आप कौन हैं? देवी ने कहा, तुम मेरा पूजन करो। इसके साथ ही अन्य लोगों से भी कराओ। यह कह देवी ने उस बालक को जीवित कर दिया। राजा ने घर जाकर बड़े उत्साह से षष्ठी देवी की पूजा की। यह पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी। अत: उस समय छठ देवी का व्रत होने लगा।