Warning: Invalid argument supplied for foreach() in /home/m2ajx4t2xkxg/public_html/wp-includes/script-loader.php on line 288 सृष्टि का विज्ञान है वेद-8 - Parivartan Ki Awaj
वेदों में वर्णित सोमरस लंबे समय से चर्चा का केंद्र बना हुआ है। कुछ लोग उसे प्रातिक नशीला पदार्थ कह कर तर्क देते हैं कि नशा का प्रचलन वैदिक युग से ही रहा है। यह सरासर गलत है। निम्न मंत्रों सहित वेद के विभिन्न मंत्रों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि सोमरस प्राकृतिक औषधियों से तैयार शक्तिवर्द्धक पेय पदार्थ होता था। इसे बनाने में मेहनत करनी पड़ती थी। देवता शक्ति और स्फूर्ति के निमित्त उसका पान करते थे। इसका स्वाद भी मीठा होता था। इस बारे में इस ब्लॉग में ही प्रकाशित एक अन्य लेख में स्पष्ट किया गया है कि सोमरस का पौधा अफगानिस्तान में पाया जाता था। अपनी खूबी के कारण ही यह देवताओं का प्रिय पेय था और उन्हें यज्ञ काल में भेंट किया जाता था। इसे पीकर वह यजमान पर प्रसन्न होते थे और उनकी मनोकामना पूरी करते थे। इस अंक में ऋग्वेद के सूक्त 15 और 16 के मंत्र और उनके अर्थ प्रस्तुत हैं।
अर्थ–हे इंद्र! ऋतु सहित सोमपान करें। ये सोम आपके शरीर में प्रविष्ट होकर तृप्ति के साधन बनें। हे मरुद्गणों! ऋतु सहित सोमपात्र से सोमपान करें। आप कल्याणदाता हैं, मेरे यज्ञ को पवित्र करें। हे त्वष्टा! देवपत्नियों सहित हमारे यज्ञ की अच्छी तरह से प्रशंसा करें और ऋतु सहित सोमपान करें। आप अवश्य ही रत्नों को देने वाले हैं। हे अग्ने! देवताओं को यहां लाकर दोनों यज्ञ स्थानों में बैठाएं। उनको विभूषित करते हुए सोमपान करें। हे इंद्र! ब्रह्मणाच्छसि पात्र से ऋतुओं के अनुसार सोमपान करें। क्योंकि आपकी मित्रता कभी नहीं टूटती है। हे अटल व्रत वाले मित्र वरुण! दोनों कर्मों में लीन रहते हुए आप ऋतुओं सहित यज्ञ में आते हैं।
अर्थ–धन की इच्छा वाले यजमान सोम तैयार करने के लिए पाषाण धारण कर धन देने वाले अग्नि की पूजा करते हैं। हे द्रविणोदा अग्ने! हमको सभी सुने गए धनों को दें, हम उन धनों को देवार्पण करते हैं। वह धनदाता अग्नि सोमपान के इच्छुक हैं। उन्हें आहुति दें और अपने स्थान को प्राप्त हों। शीघ्रता कर ऋतिओं सहित नेष्टा के पात्र से सोम पिलाएं। हे धनदाता! ऋतुओं सहित आपको चौथी बार सोम अर्पित करते हैं। आप हमारे लिए धन प्रदान करने वाले बनें। अग्नि में प्रकाशित, नियमों में दृढ़, ऋतु के साथ यज्ञ के निर्वाहक अश्विनीकुमारों! इस मधुर सोम का पालन और यज्ञ का निर्वाह करने वाले हैं। देवताओं की कामना करने वाले यजमान के लिए देवार्चन करें।
अर्थ–हे अभीष्ट वर्षक इंद्र! आप अपने प्रकाशित रूप वाले अश्वों को सोमपान के लिए यहां लायें। इंद्र के दोनों घोड़े उन्हें सुखदायक रथ में बिठाकर घी से स्निग्ध धान्य के निकट उन्हें ले आएं। हम उषाकाल में इंद्र का आह्वान करते हैं। यज्ञ संपादन काल में सोमपान करने के लिए इंद्र का आह्वान करते हैं। हे इंद्र! अपने लंबे केश वाले अश्वों के साथ यहां आइए। सोमरस छन कर तैयार हो जाने पर हम आपका आह्वान करते हैं। हे इंद्र! सोमरस के लिए हमारे स्तोत्रों से यहां आकर प्यासे मृग के समान सोमरस का पान करें।
अर्थ–हे इंद्र! यह परम शक्ति वाले, निष्पन्न सोम कुशासन पर रखे हैं, आप उन्हें शक्तिवर्द्धन के निमित्त पीएं। हे इंद्र! यह श्रेष्ठ स्तोत्र मर्मस्पर्शी और सुख का कारणभूत है। आप इसे सुनकर तुरंत ही इस निष्पन्न सोम का पान करें। जहां सोम छाना है वहां सोम पान के निमित्त उससे उत्पन्न प्रसन्नता प्राप्ति के लिए दुष्टों को मारने वाले इंद्र अवश्य पहुंचते हैं। हे महाबली इंद्र! गाय और अश्वादि युक्त धनों वाली हमारी सारी कामनाएं पूर्ण कीजिए। हम ध्यानपूर्वक आपका स्तवन करते हैं।