सृष्टि का विज्ञान है वेद-1

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Mantras are as useful as science

विश्व में सबसे शक्तिशाली विचार होते हैं। जैसे हमारे विचार होंगे, हमें फल भी वैसे ही मिलेंगे। विचार का हमारे जीवन में वैसा ही महत्व होता है, जैसे वृक्ष एवं फल के लिए बीज का। इसीलिए कहा गया है कि विचारों को हमेशा स्पष्ट और सकारात्मक रखें। इससे हम दूसरों की ही नहीं बल्कि खुद की राह आसान बनाते हैं। स्पष्ट, सकारात्मक और ऊंचे विचार ही हमें ऊंचाई पर ले जा सकते हैं। यदि विचार में ताकत हो तो कोई भी लक्ष्य हमारे लिए कठिन नहीं रह सकता है। इस बारे में हमारे धर्मग्रंथों, खासकर वेद में काफी कुछ है। मेरा अटूट विश्वास है कि वेद को पढ़कर नाम मात्र भी समझने वाला व्यक्ति विचार और ज्ञान के मामले में परिपूर्ण हो जाता है। इसके बाद उसके लिए कुछ और जानना शेष नहीं रह जाता है। दुर्भाग्य से दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण इस ग्रंथ की चर्चा तो खूब होती है लेकिन इसे पढ़ने वाले बहुत कम लोग मिलते हैं।


वेद की पूरी व्याख्या आज के जमाने में लगभग असंभव है लेकिन मेरी कोशिश है कि ज्ञान-विज्ञान से भरपूर हिंदुओं के इस सबसे महान धर्म ग्रंथ (चारों वेद) को संक्षिप्त रूप (सपाट मंत्र, उसका भावार्थ और संक्षिप्त चर्चा) में आप तक प्रस्तुत करूं। इसके साथ ही यह जानकारी भी देने का प्रयास करुँगीँ कि वेद और उसके मंत्रों का असली अर्थ क्या है? यह किस तरह हमारे जीवन को और बेहतर बना सकता है? यदि पाठक इसका फायदा उठा सके तो मैं समझूंगा की मेरी मेहनत सफल हुई।


वेद सामान्य धर्मग्रंथ नहीं बल्कि सृष्टि का विज्ञान है। वेद में सृष्टि के प्रारंभ, विस्तार, संचालन के नियम और मानव जीवन में उसके महत्व को विस्तार से समझाया गया है। इसे आत्मसात कर और इसके बताए रास्ते पर चलकर हम अपने जीवन को और बेहतर बना सकते हैं। यह एक तरह से हमारे जीवन से सीधा जुड़ा हुआ है। इसके अध्ययन से आप यह भी समझ सकते हैं कि 33 कोटी देवी-देवताओं का रहस्य क्या है? वास्तव में वेद में देवताओं की स्तुति एवं प्रार्थना की भरमार है। वैदिक विचारधारा के अनुसार प्रत्येक जड़ एवं भौतिक पदार्थ की आत्मा होती है। वही उसका देवता है। इसी सिद्धांत के तहत अहम ब्रह्मोस्मि की घोषणा की गई है। वैदिक ऋषि सृष्टि के मूल तत्वों और उसके मर्म को न सिर्फ ठीक से समझते थे बल्कि उसका दोहन करना और उससे सीधा संपर्क स्थापित करना जानते थे। यही कारण है कि देवी-देवताओं समेत समस्त पारलौकिक शक्तियों से उनका सीधा संबंध था और वे उसका भरपूर लाभ उठाते थे।


दूसरे धर्मावलंबी एवं कुतर्की इसी आधार पर वैदिक धर्म की आलोचना करते है। दरअसल वे वेद के मूल सिद्धांत और भाव को समझ ही नहीं पाते हैं। चूंकि उनका मानसिक स्तर और सोच का दायरा सीमित है, इसलिए वे उसी आधार पर वैदिक सिद्धांतों की व्याख्या की कोशिश कर आलोचना करते हैं। यह प्रयास आसमान में कीचड़ उछालने की तरह है। वैज्ञानिक शोधों से स्पष्ट हो चुका है कि पूरा ब्रह्मांड एक ही मूल तत्व से बना है। पहले न्यूट्रान, इलेक्ट्रान और प्रोटोन और अब गॉड पार्टीकल की खोज इसी सिद्धांत को स्थापित करता है। आज से शुरू इस श्रृंखला में ऋग्वेद का पहला वेद मंत्र निम्न है। होता ने ऋग्वेद का पहली बार पाठ किया था।


ऋग्वेद के पहले पहले अनुवाक के पहले सूक्त के ऋषि- मधुच्छन्दा विश्वामित्र, देवता-अग्नि एवं छंद-गायत्री हैं—

ऊं अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्।।1।।

अग्नि:  पूर्वेभिर्ऋषिभिरीड्यो  नूतनैरुत। स  देवां  एह  वक्षति।।2।।

अग्निना रयिमश्नवत्  पोषमेव  दिवेदिवे। यशसं  वीरवत्तमम्।।3।।

अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वत: परिभूरसि। स  इद् देवेषु गच्छति।।4।।

अग्निर्होता कविक्रतु: सत्यश्चित्रश्रवस्तम:। देवो देवेभिरा गमत्।।5।।


अर्थ— अग्रणी प्रकाशित, यज्ञकर्ता, देवदूत, सत्यमुक्त अग्नि का स्तवन करता हूं। पूर्वकाल में जिनकी ऋषियों ने उपासना की थी तथा अब भी ऋषिगण जिनकी स्तुति करते हैं, उन अग्नि देवगण को यज्ञ में बुलाता हूं। अग्नि धनों को दिलाने वाला, पोषक व वीरतत्व प्रदान करने वाला है। हे अग्ने! तू जिस यज्ञ में सर्वत्र विराजमान है, उसमें विघ्न संभव नहीं। वह यज्ञ स्वर्गस्थ देवगण को तृप्त करता है। हे अग्ने! तू हवि-वाहक, ज्ञान-कर्म का प्रेरक, अमर, यशस्वी देवताओं सहित यज्ञ को प्राप्त हो।


यदंग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि। तवेत् तत् सत्यमंगिर: ।।6।।

उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम्। नमो भरन्त एमसि।।7।।

राजन्तमध्वराणां  गोपामृतस्य दीदिविम्। वर्धमानं  स्वे  दमे ।।8।।

स न: पितेव सूनवे स्ग्ने सूपायनो भव। सचस्वा न: स्वस्तये ।।9।।2

अर्थ— हे अग्ने! तू हविदाता का कल्याण करने वाला है। अवश्य ही वह कर्म तुझे प्राप्त होता है। हे अग्ने! हम दिन-रात अपनी बुद्धि और हृदय से नमस्कारपूर्वक तेरा सामीप्य प्राप्त करते हैं। हे अग्ने!  तू यज्ञ को प्रकट करने वाला, सत्य-रक्षक, स्वयं प्रकाशित तथा सहज ही वृद्धि प्राप्त होता है। हे अग्ने! पिता जैसे पुत्र के पास स्वयं ही पहुंच जाता है, वैसे ही तू हमको सुगमता से प्राप्त हो जाता है। इसलिए तू हमारे लिए मंगलदाता बन।


विशेष— उपरोक्त दोनों प्रार्थनाएं हमारे जीवन में अतिमहत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अग्नि के लिए है। यह प्रार्थना एक तरह से अग्नि के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन है। लगातार शोधों से यह स्पष्ट हुआ है कि जड़-चेतन आदि किसी के प्रति भी कृतज्ञता का भाव न सिर्फ उस वस्तु को हमारे प्रति सकारात्मक बनाता है, बल्कि हमारे अंदर निहित सकारात्मक ऊर्जा को और शक्तिशाली बनाकर हमें प्रकृति की ताकतों के अधिक से अधिक दोहन की क्षमता देता है। आप किसी वस्तु, व्यक्ति या प्रकृति को सीधे यदि प्रार्थना, कृतज्ञता ज्ञापन या घृणा के रूप में कोई संदेश देते हैं तो वह प्रकृति के खास फ्रीक्वेंसी के माध्यम से न सिर्फ संबंधित व्यक्ति, वस्तु या प्रकृति के खास विंदू तक पहुंचता है, बल्कि वहां से उसी रूप में पुनः आपकी ओर वापस लौटता है। मेरा अनुभव है कि उसके प्रयोग से आध्यात्मिक क्षेत्र के साथ ही भौतिक जगत में भी आश्चर्यजनक सफलता मिलती है। ऋषि-मुनि ही नहीं मौजूदा समय के वैज्ञानिक व अपने-अपने क्षेत्र के अन्य सफल लोग भी जाने-अनजाने की ताकत का अपने पक्ष में उपयोग करते हैं।



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